क्या सो रहे हो चिता पे? सोते रहो वो जलाने आयेंगे तुम्हें तुम अंदर से रोते रहो दबाव उनका रहेगा कई सामानों के साथ, तुम पर तुम और नीचे दबते रहो फिर आयेगा सैलाब आग का पिघल जायेगी सारी जजबाते तुम्हारे खाल के साथ पर तबतक तुम बस जुझते रहो तुम खोते रहो इस धुऐ में तबतक तुम अपने आप को राख़ में समेटते रहो तबतक तबदील हुआ होगा मिट्ठी में तुम्हारे बदन का हर एक हिस्सा लेकिन एक हिस्सा उन्होंने संभाला होगा उससे खेलते रहेंगे आखिर तक बस तबतक तुम हवा कि तरह झूलते रहो और तबतक तुम सोते रहो। -Sushant Kamble
सोचता हूँ अब कुछ एहसास लिखू पर अबतक मैंने कुछ महसूस किया ही नहीं, मैंने पत्थरो से जाना के मेरे लहू मैं एक अजीबसी थंडक आगयी हैं, सोता हूँ तो आसमान भी सफेद नज़र आता है पर शायद अबतक सोया भी नहीं हूँ, इन सारी बातों से जब डर जाता हूँ तो सोचता हूँ के, मैं अपने नाकाबिलियत पे अबतक रोया भी नहीं हूँ, जंगल का एक तिहाई हिस्सा शायद मैंने पार कर लिया ही होगा या सिर्फ दो चार पेड अबतक, सोच रहा हूँ अब कुछ तो करू के चिंगारी बनके फैल जाऊ इस जंगल में लेकिन डर लगता है कोई कतरा बुझा ना दे मुझे। -Sushant Kamble